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ईद मुबारक़

ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फ़िर भी तुझको ईद मुबारक़
काम धाम सब बँद पड़े है
भूखे पेट गरीब चले है
छीन गई है रोजनदारी
खाने के भी लाले पड़े है
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फ़िर भी तुझको ईद मुबारक़
ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
छाले पड़े थे पाँव में उसखे
नंगे ही थे जी पाँव ही उसखे
तड़फ किसे नजर जी आती
मजदूर था किसे उसपे रहमत आती
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फ़िरभी तुझको ईद मुबारक़
ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
माँ पेट से थी फ़िरभी चल पड़ी थी
बच्चोंके अरमानो की तो लाश पड़ी थी
नम थी आँखे बाप के उसखे
मजबूरी में बच्चे भी अब चल पड़े थे
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फिर भी तुझको ईद मुबारक़
ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
नए कपड़े लाने का जी अब होता नही
भूखे ही जो घर चले है दर्द देखा जाता नही
कैसे मैं मेरी खुशी घर मे  अपने मनालेता
धूँप में जलते पाँव उसखे मैं कैसे हँस लेता
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फिर भी तुझको ईद मुबारक़
ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
दरदर भटक रहे है खाने कि तलाश में
बचा नही है कोई राशन चूल्हे भी बँद पड़े है
हवाई जहाजोंसे जो आई बीमारी
पैदल ही निकल पड़ी है गरीब सवारी
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फ़िर भी तुझको ईद मुबारक़
ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
कैसी सरकार कैसा शासन
सबका यहाँ धंदा था
पैसे वाला ही यहाँ राजा था जो
प्रजा का लुटा चंदा था
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फिर भी तुझको ईद मुबारक़
ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
पुराने ही कपड़े उसखे
फटे हुए जूते है
कुछ नही खरीदूँगा मैं
वह भूखा चलता अल्लाह मेरा रसूल है
कैसे कहूँ ईद मुबारक़
फिर भी तुझको ईद मुबारक़
ईद मुबारक़ ईद मुबारक़
©साहिल-ऐ-युसूफ़

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